जाति जनगणना: क्या यह समय की मांग है?….तरुण खटकर…

खबर शेयर करे।।

बलौदाबाजार-भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ सामाजिक संरचना सदियों से जाति व्यवस्था के इर्द-गिर्द घूमती रही है।

स्वतंत्रता के सात दशकों से अधिक समय बीत जाने के बाद भी, जाति भारतीय समाज के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवसरों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। इस जटिल पृष्ठभूमि में, जाति जनगणना का मुद्दा लोकसभा में नेताप्रतिपक्ष कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा बार-बार उठता रहा है, जिससे पक्ष और विपक्ष में तीखी बहस छिड़ जाती है।

जाति जनगणना के पक्ष में तर्क:-
जाति जनगणना के समर्थन में महत्वपूर्ण कारण प्रस्तुत हैं जो इसे आवश्यक बताते हैं:

सटीक डेटा का अभाव:-वर्तमान में, हमारे पास विभिन्न जातियों की जनसंख्या का कोई व्यापक और अद्यतन डेटा नहीं है। स्वतंत्रता के बाद केवल एक बार, 1931 में, सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) आयोजित की गई थी, लेकिन इसके जाति-विशिष्ट डेटा को सार्वजनिक नहीं किया गया। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) और अन्य सर्वेक्षण आंशिक जानकारी प्रदान करते हैं, लेकिन वे व्यापक राष्ट्रीय स्तर की तस्वीर पेश करने में अपर्याप्त हैं। सटीक डेटा के बिना, नीतियों और कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लक्षित करना मुश्किल है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकास का लाभ सभी तक समान रूप से पहुंचे।

नीतियों का बेहतर लक्ष्यीकरण:- जाति जनगणना से प्राप्त डेटा सरकार को विभिन्न जातियों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति की स्पष्ट तस्वीर प्रदान कर सकता है। इस जानकारी का उपयोग लक्षित नीतियां और कार्यक्रम बनाने के लिए किया जा सकता है जो विशिष्ट जाति समूहों की जरूरतों को पूरा करते हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को उन जातियों तक पहुंचाया जा सकता है जो ऐतिहासिक रूप से वंचित रही हैं।

समानता और सामाजिक न्याय:-जाति जनगणना सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह उन जातियों की पहचान करने में मदद कर सकता है जो अभी भी सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं और उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए विशेष उपाय करने की आवश्यकता है। यह आरक्षण नीतियों को अधिक तर्कसंगत और आवश्यकता-आधारित बनाने में भी मदद कर सकता है।

संसाधनों का उचित आवंटन:-जाति जनगणना से प्राप्त जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संसाधनों का अधिक न्यायसंगत आवंटन किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि विकास के लाभ जनसंख्या के सभी वर्गों तक पहुंचें, न कि केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त समूहों तक। यानी कि जिसकी जितनी आबादी उतनी उसकी हिस्सेदारी

लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व:-जाति जनगणना राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर भी प्रकाश डाल सकती है। जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर, यह पता चल सकता है कि क्या विभिन्न जातियों को विधायिका और अन्य राजनीतिक संस्थानों में उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिल रहा है या नहीं।

जाति जनगणना के विपक्ष में तर्क:
वहीं, जाति जनगणना के विरोध मे भी कुछ महत्वपूर्ण चिंताएं और तर्क प्रस्तुत हैं:

सामाजिक विभाजन और तनाव:-आलोचकों का तर्क है कि जाति जनगणना से सामाजिक विभाजन और तनाव बढ़ सकता है। यह जातियों के बीच पहचान और प्रतिस्पर्धा को मजबूत कर सकता है, जिससे सामाजिक सद्भाव और एकता खतरे में पड़ सकती है।

राजनीतिक दुरुपयोग की संभावना:- यह आशंका व्यक्त की जाती है कि जाति जनगणना के आंकड़ों का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है। राजनीतिक दल वोट बैंक बनाने और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के लिए जातिगत पहचान का उपयोग कर सकते हैं।

प्रशासनिक चुनौतियां और लागत:-भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में जाति जनगणना कराना एक जटिल और महंगी प्रक्रिया होगी। इसमें बड़ी मात्रा में जनशक्ति, समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी। डेटा संग्रह और विश्लेषण में त्रुटियों की संभावना भी बनी रहेगी।

विकास और आधुनिकता पर ध्यान भटकना:-कुछ लोगों का मानना है कि जाति जनगणना जाति आधारित पहचान को मजबूत करके विकास और आधुनिकता पर ध्यान भटका सकती है। उनका तर्क है कि सरकार को जाति से परे हटकर आर्थिक विकास और सार्वभौमिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

पिछड़ेपन का स्थायीकरण:-एक और चिंता यह है कि जाति जनगणना से जाति आधारित पहचान स्थायी हो जाएगी और पिछड़ेपन की भावना बनी रहेगी। आलोचकों का सुझाव है कि सरकार को जाति को कम महत्व देने और व्यक्तिगत योग्यता और क्षमता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए काम करना चाहिए।

निष्कर्ष:
जाति जनगणना एक जटिल मुद्दा है जिसके पक्ष और विपक्ष में मजबूत तर्क हैं। यह निर्विवाद है कि हमारे पास विभिन्न जाति समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विश्वसनीय और व्यापक डेटा की कमी है, जो प्रभावी नीति निर्माण में बाधा डालती है। जाति जनगणना इस डेटा की कमी को दूर करने और लक्षित विकास कार्यक्रमों को डिजाइन करने में मदद कर सकती है।
हालांकि, सामाजिक विभाजन, राजनीतिक दुरुपयोग और प्रशासनिक चुनौतियों जैसी वैध चिंताएं भी हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। देश के संसद में कैबिनेट में पारित फैसले अनुसार यदि जाति जनगणना कराई जाती है, तो यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि डेटा संग्रह और विश्लेषण निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से किया जाए, और इसका उपयोग सामाजिक सद्भाव और समावेश को बढ़ावा देने के लिए किया जाए, न कि विभाजन और भेदभाव को बढ़ाने के लिए।

अंततः-जाति जनगणना समय की मांग है इसलिए जाति जनगणना के आवश्यकता और उसके संभावित प्रभावों को देखते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कैबिनेट में जाति जनगणना कराने का फैसला किया है सरकार से मेरी मांग है इस संवेदनशील मुद्दे पर लिया गया निर्णय निष्पक्ष और दूरदर्शिता के साथ हो ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता के व्यापक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक हो।

WhatsApp Image 2024-12-29 at 14.32.07_afb4a18e
WhatsApp Image 2024-12-29 at 14.32.06_4e1d3938
error: Content is protected !!
BREAKING