पवनी(बिलाईगढ़):-“लोकार्पण के बाद उपेक्षा का शिकार हुआ अटल परिसर : अंधेरे में डूबी मूर्ति, शराबियों का अड्डा बना श्रद्धा का स्थान”…

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बिलाईगढ़:- नगर पंचायत पवनी, जिला सारंगढ़-बिलाईगढ़ में स्थित ‘अटल परिसर’ का लोकार्पण एक ऐतिहासिक अवसर था। यह समारोह छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री माननीय श्री अरुण साव के करकमलों से सम्पन्न हुआ। परिसर का निर्माण भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति और विचारों को समर्पित कर, युवाओं को प्रेरणा देने के उद्देश्य से किया गया था। परंतु यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि उद्घाटन के सिर्फ तीन दिन बाद ही यह परिसर उपेक्षा और अव्यवस्था का शिकार हो गया है।

आज यह स्थल श्रद्धा का नहीं, लापरवाही और प्रशासनिक निष्क्रियता का प्रतीक बन चुका है। अटल जी की प्रतिमा अंधेरे में डूबी हुई है, और परिसर में शराबियों का जमावड़ा आम बात हो गई है। न कोई सुरक्षा है, न प्रकाश की कोई व्यवस्था, और न ही जनप्रतिनिधियों या सीएमओ की ओर से कोई संज्ञान। पूरे नगर में इस उपेक्षा को लेकर गहरा आक्रोश व्याप्त है।

एक भव्य लोकार्पण, जिसके बाद शुरू हुई गिरावट:-3 जुलाई 2025 को आयोजित लोकार्पण समारोह में क्षेत्र के प्रमुख जनप्रतिनिधि, स्थानीय प्रशासन, मीडिया प्रतिनिधि, समाजसेवी एवं बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद थे। उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने अपने संबोधन में कहा था कि यह परिसर न केवल अटल जी की स्मृति को समर्पित है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का केंद्र बनेगा।”उद्घाटन के दिन परिसर को दुल्हन की तरह सजाया गया था, रंग-बिरंगे झंडे, फूलों की मालाएं, अस्थायी लाइटिंग, और मंच के चारों ओर उत्सव का माहौल था। परंतु लोकार्पण के केवल तीन दिन बाद ही परिसर पर अंधकार और उपेक्षा का साया छा गया।

प्रतिमा अंधेरे में, परिसर उजाला विहीन:-अटल जी की प्रतिमा के चारों ओर किसी भी प्रकार की स्थायी प्रकाश व्यवस्था नहीं की गई। उद्घाटन समारोह के लिए लगाए गए लाइट्स को समापन के साथ ही हटा दिया गया, और उसके बाद से अब तक वहां कोई भी बिजली कनेक्शन या स्ट्रीट लाइट स्थापित नहीं की गई है।

रात होते ही पूरा परिसर अंधकार में डूब जाता है। अंधेरे के कारण न केवल यह स्थान निर्जन प्रतीत होता है, बल्कि यह असुरक्षा का वातावरण भी उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में अटल जी जैसी महान विभूति की प्रतिमा का अंधेरे में डूबा होना शर्मनाक है।

शराबियों का अड्डा, महिलाओं और बच्चों के लिए असुरक्षित:-स्थानीय निवासियों ने बताया कि जैसे ही शाम होती है, परिसर में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा शुरू हो जाता है। शराब पीना आम हो गई हैं।

प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की आंखें बंद:-स्थानीय नागरिकों और समाजसेवियों ने बताया कि नगर पंचायत के सीएमओ (मुख्य नगर पालिका अधिकारी), और सभी वार्ड पार्षद इस रास्ते से गुजरते है लेकिन अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। सबसे चिंताजनक बात यह है कि उद्घाटन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले जनप्रतिनिधि अब पूरी तरह से मौन साधे हुए हैं।

जनता के सवाल:-जब लोकार्पण इतना भव्य किया गया, तो देखरेख की व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
क्या अटल जी जैसी महान शख्सियत की प्रतिमा के साथ यह व्यवहार उचित है? क्या जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी सिर्फ फोटो खिंचवाने तक सीमित रह गई है?

स्थानीय लोगों का बढ़ता रोष:-परिसर की यह दुर्दशा देखकर स्थानीय नागरिकों में आक्रोश लगातार बढ़ रहा है। यह सिर्फ एक मूर्ति नहीं, अटल जी की विचारधारा और उनकी विरासत का प्रतीक है। उसकी यह हालत पूरे समाज के लिए अपमानजनक है।”

क्या कहते हैं विशेषज्ञ और सामाजिक चिंतक:-राजनीति में स्मारकों का निर्माण अब इवेंट मैनेजमेंट बन गया है। अटल परिसर इसका जीवंत उदाहरण है, जहाँ केवल उद्धघाटन के दिन तक ही सजगता थी। यह प्रशासन की सीधी विफलता है।”

लोगों की मांगें:-

1. स्थायी बिजली कनेक्शन और उचित स्ट्रीट लाइटिंग की तत्काल व्यवस्था।
2. परिसर में सुरक्षा गार्ड की तैनाती, खासकर शाम और रात के समय।
3. शराब पीने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था।
4. परिसर की नियमित सफाई और रखरखाव सुनिश्चित किया जाए।
5. स्थानीय निगरानी समिति का गठन जिसमें आम नागरिकों को भी शामिल किया जाए।

अटल जी की मूर्ति नहीं, हमारी चेतना अंधेरे में है,अटल बिहारी वाजपेयी भारत के उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने राष्ट्र को शब्दों, विचारों और कार्यों से दिशा दी। उनकी स्मृति में बने किसी भी स्थल की यह दुर्दशा न केवल प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि यह समाज के उस हिस्से का भी प्रतिबिंब है जो ‘समारोहों में तालियाँ तो बजाता है’, लेकिन देखरेख की ज़िम्मेदारी से दूर भागता है।

यह सिर्फ एक मूर्ति की कहानी नहीं है। यह उस राजनीतिक और सामाजिक सोच की पोल खोलती है, जिसमें स्मारक बनाना गर्व की बात है, पर उन्हें संरक्षित करना बोझ माना जाता है।

अगर अब भी समय रहते जनप्रतिनिधि, प्रशासन और नागरिक समाज नहीं जागा, तो अटल परिसर जैसे स्थल श्रद्धा नहीं, उपेक्षा और गिरावट के प्रतीक बनते चले जाएंगे।अंधेरे में डूबी अटल जी की प्रतिमा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में अपने आदर्शों के साथ न्याय कर रहे हैं?”

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