बिलाईगढ़-बिलाईगढ़ अंचल में शिक्षा को लेकर एक बड़ा विवाद सामने आया है। सरसिंवा में स्वीकृत शासकीय महाविद्यालय को दूरस्थ ग्राम धोबनी में स्थानांतरित किए जाने की संभावित प्रक्रिया ने स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों और विशेषकर कमजोर एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों में गहरी नाराजगी पैदा कर दी है। अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य डॉ हेमचंद्र रेशम लाल जांगड़े ने प्रेस को दिये एक बयान में कहा कि यह निर्णय न केवल शिक्षा के अधिकार से समझौता है, बल्कि सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत भी है।
सरसिंवा, बिलाईगढ़ क्षेत्र का एक विकसित और प्रमुख कस्बा है, जहां नगर पंचायत की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसका भौगोलिक व सामाजिक ढांचा इसे महाविद्यालय स्थापना के लिए उपयुक्त बनाता है। सरसिंवा रोड पर स्थित यह कस्बा परिवहन, आवागमन, बाज़ार और अन्य आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित है। यही वजह है कि आसपास के कई गाँव जैसे पेंड्रावन,सेंदुरस, मधाईभांठा, बालपुर,बम्हनपुरी आदि के विद्यार्थी लंबे समय से यहां कॉलेज खुलने की मांग कर रहे थे। चूंकि इन क्षेत्रों में शासकीय महाविद्यालय नहीं है, इसलिए छात्रों को हसौद या निजी कॉलेजों में पढ़ने मजबूरन जाना पड़ता है, जहां फीस के बोझ के कारण कई आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं।
बिलाईगढ़ अंचल में अनुसूचित जाति तथा अन्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की बड़ी आबादी निवास करती है। यहां के अधिकांश परिवार आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं हैं कि वे अपने बच्चों को रोजाना दूरस्थ स्थानों तक भेज सकें या निजी संस्थानों की ऊंची फीस वहन कर सकें। यही वजह है कि सरसिंवा में कॉलेज की स्थापना को लोग शिक्षा में समान अवसर की दिशा में महत्वपूर्ण कदम मानते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब सरसिंवा में महाविद्यालय स्वीकृत हो चुका था और उसके लिए सभी आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता भी सिद्ध है, तो अचानक इसे धोबनी जैसे दूरस्थ गांव में स्थानांतरित करने की चर्चा क्यों होने लगी? सरसिंवा की शिक्षा व्यवस्था पहले से ही आसपास के गांवों के विद्यार्थियों के लिए केंद्र की तरह काम करती रही है। यहां पहले से हायर सेकंडरी स्कूल संचालित हैं, जिनसे हर वर्ष बड़ी संख्या में विद्यार्थी स्नातक स्तर की शिक्षा के लिए उपलब्ध होते हैं। यदि महाविद्यालय सरसिंवा में ही स्थापित होता है तो यह विद्यार्थियों के लिए बड़ी राहत साबित होगा, खासकर उन बच्चों के लिए जो सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर हैं और सरकारी महाविद्यालयों में मिलने वाली छात्रवृत्ति, लैब, पुस्तकालय और अन्य शैक्षणिक सुविधाओं का लाभ उठाना चाहते हैं।
वहीं दूसरी ओर धोबनी, जहां कॉलेज स्थानांतरित करने की बात की जा रही है, एक अत्यधिक दूरस्थ ग्राम है। न केवल वहां आवागमन की नियमित सुविधा का अभाव है, बल्कि आसपास के गाँवों से वहाँ पहुंचना भी विद्यार्थियों के लिए शारीरिक, वित्तीय और समय की दृष्टि से अत्यंत कठिन होगा। विशेष रूप से लड़कियों के लिए यह परिस्थितियाँ और भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में कॉलेज के धोबनी जाने से शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा रखने वाले कई गरीब, कमजोर और ग्रामीण विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर हो सकते हैं।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह निर्णय शिक्षा की पहुंच को सीमित करने वाला और छात्र हितों के प्रतिकूल है। कई लोगों ने इसे “साजिश” शब्द से संबोधित करते हुए सरकार और प्रशासन से मांग की है कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए और सरसिंवा में ही महाविद्यालय की स्थापना की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा है कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान को वहाँ स्थापित किया जाना चाहिए जहाँ छात्र संख्या अधिक हो, सुविधा उपलब्ध हो और सभी वर्गों के विद्यार्थियों को समान रूप से लाभ मिल सके इन सभी मानकों पर सरसिंवा पूर्णतः खरा उतरता है।
इसके अलावा, महाविद्यालय के सरसिंवा में बनने से इस पूरे क्षेत्र में शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, स्थानीय युवाओं को उच्च शिक्षा के नए अवसर मिलेंगे और रोजगार व विकास के रास्ते खुलेंगे। सरसिंवा एक व्यस्त एवं विकसित रोड पर स्थित होने के कारण यहां निजी व सार्वजनिक परिवहन की नियमित सुविधा उपलब्ध रहती है, जिससे विद्यार्थियों को आने-जाने में कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। दूसरी ओर धोबनी में महाविद्यालय जाने से न केवल विद्यार्थियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, बल्कि कमजोर तबके के कई बच्चे शिक्षा से दूर हो जाएंगे, जो कि शिक्षा के अधिकार और सामाजिक समानता की भावना के खिलाफ है।
इसी वजह से क्षेत्र के जागरूक नागरिकों, सामाजिक संगठनों और छात्रों ने सरकार से आग्रह किया है कि वह इस मुद्दे पर पुनर्विचार करे। लोगों का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार हमेशा शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात करती है और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों की प्रगति के लिए काम करने का दावा करती है। ऐसे में सरकार को इस निर्णय के संभावित दुष्परिणामों पर गंभीरता से सोचते हुए छात्र हित को सर्वोपरि रखना चाहिए।
स्थानीय मांग स्पष्ट है सरसिंवा जैसे सुगम, विकसित और विद्यार्थियों की आवश्यकताओं के अनुरूप स्थान को छोड़कर महाविद्यालय को अन्यत्र ले जाना किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं है। अतः सरकार को चाहिए कि वह तत्काल कदम उठाते हुए बिलाईगढ़ अंचल के विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए सरसिंवा में ही शासकीय महाविद्यालय की स्थापना सुनिश्चित करे।
अपने आप में यह मुद्दा केवल एक कॉलेज का नहीं, बल्कि हजारों विद्यार्थियों के भविष्य का प्रश्न है। यदि सरकार सही निर्णय लेकर सरसिंवा में महाविद्यालय की स्थापना करती है, तो यह कमजोर, गरीब और ग्रामीण तबके के बच्चों को सशक्त बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम साबित होगा।
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